इंडियन रन्नर बत्तख़ की सामान्य जानकारी

इंडियन रन्नर बत्तख़ की सामान्य जानकारी

इंडियन रन्नर डक भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से लिया गया अंग्रेजी अनुवाद है।

इंडियन रन्नर बत्तख़ की सामान्य जानकारी

भारत के आम ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाने वाला यह बत्तख़ खाकी कैंपबेल के बाद अंडे देने में दूसरे स्थान में आता है। 

जो साल में 210 से 250 तक अंडे देती है। जो बत्तख़ के फ़ीड पर निर्भर करता है।

इंडियन रन्नर बत्तख़ की प्रजाति

इंडियन रन्नर की प्रजाति की तीन किस्म होती है।

इंडियन रन्नर बत्तख़
इंडियन रन्नर बत्तख़

पैंसिल्ड किस्म

वाईट रन्नरब

फॉन और वाईट रन्नर

पैंसिल्ड किस्म:- 

   इस किस्म की नर बत्तख़ का रंग हल्के तांबे रंग की पूछ और पीठ के पंख नरम फिसलन भरे होते है। सिर में सफेद रंग होता है।

मादा बत्तख़ सफेद और हल्के भूरे रंग के होते है। देखने से हल्के पीलेपन की तरह रंग लगता है।

वाईट रन्नरब:-

इस किस्म में चमकदार सफेद रंग होता है। चोंच और पंजे संतरी होती है। पीछे का मोटापन होता है सामने के मुकाबले। आंख लंबा आकर होता है। दूसरे बत्तखों के मुकाबले

फॉन और वाईट रन्नर:-

इस बत्तख़ का आकार बहुत आकर्षित होता है। पूछ नीचे जमीन के नजदीक झुका कर और छाती को ऊपर उठ कर चलती है।

चोंच पिला संतरी होता है जो स्थाई नही रहता। पूरी तरह से बड़े होने पर चोंच हरे रंग की हो जाती है।

पैर छोटे और पतले होते है दूसरी किस्म के मुकाबले।

इंडियन रन्नर बत्तख़ वजन कितना होता है।

नर:- का वजन 1.5 किलो से 2.2 किलो तक होता है।

मादा:- का वजन 1.3 किलो से 2 किलो होता है।

इंडियन रन्नर की रोग प्रतिरोधक शक्ति।

इंडियन रन्नर बत्तख़ की रोग प्रतिरोधक शक्ति बहुत अच्छी होती है। 

आम तौर पर इंडियन रन्नर में बीमारी लगने के 2% से 5 % संभावन ही होती है।

अगर फार्म में किसी के इंडियन रन्नर बत्तख़ बीमार हो जाते है तो कही न कही फार्मर की गलती होती है।

इंडियन रन्नर बत्तख़ खुले में रहने वाली प्रजाति है। फार्मर को हमेशा कोशिश करनी चाहिये इसे जितनी ज्यादा खुला जगह देने की।

बत्तख़ में होने वाली बीमारियों के नाम

डक वायरस हेपेटाइटिस ( Duck virus hepatitis )

ईस बीमारी को 1 दिन के बच्चे से 25 दिन के बच्चे में देखा जाता है।

यह एक संक्रमित बीमारी है। जो हर्पस नामक विषाणु से होते है। 

लक्षण, बहुत तेज़ दस्त, सुस्त हो जाना, और आंतरिक रक्त खून का बहना होता है। 

रीमेरेला एनाटिपेस्टिफ़ेर संक्रमण  ( Riemerella anatipestifer infection )

इस विषाणु की चपेट में आने वाले बत्तख़ का वजन कम होने लगता है। दस्त होना और कभी कभी बिट में रक्त भी जाता है। गर्दन और सिर को घूमने के लक्षण होते है।

डक पॉक्स ( Duck pox )

इस बीमारी के चपेट में आने वाले बत्तख़ की ग्रोथ धीमा होता है। डक पॉक्स दो प्रकार के होते है। सूखा पॉक्स और गिला पॉक्स। 

एफ्लाटॉक्सिकोसिस ( Aflatoxicosis )

यह फंगस के कारण होता है। जिसका मुख्य कारण फीड में नमी जिनमें अल्फा टोक्सिन की मात्रा होती है। उस फीड को खाने से होती है। इसके लक्षण सुस्त रहना, ग्रोथ में कमी, अंडे उत्पादन में कमी होना शामिल है।

बतख प्लेग, डक वायरस एंटरटाइटिस ( Duck plague  ,Duck Virus Enteritis )

यह एक संक्रमित बीमारी है। जो बहुत ही पर्भावशाली दुष्परिणाम होता है। यह छोटे और बड़े सभी बत्तखों होता है। लक्षण सुस्त, और दस्त पिले, हरे, रंग के होते है। पंख ढीला कर देना, आदि शामिल है।

एशेरिशिया कोलाइ द्वारा संक्रमण ( Colibacillosis )

यह एक आम देखे जाने वाली बीमारी है। इसका प्रमुख कारण ई-कोली होता है।

साल्मोनेला ( Salmonella )

इस बीमारी के चोइट में आने वाले बत्तख़ में लगड़ापन, एक तरफ अकेला रहना, आंखे बंद होना, पंख का ढीला होना, शामिल होता है।

बत्तख़ पालन में होने वाली समसयाओं से निपटने के लिये। कमेंट करें

indianhatchery.com को अपनी राय बताएं

अगर आप बत्तख़ की कोई ऐसी जानकारी ढूंढ रहे है जो आपको हमारे साइट www.indianhatchery.com

पर नही मिल रही तो आप नीचे कमेंट कर सकते है।

हम जल्द आपके सवालों के जबाब देंगे।

आप किस विषय मे लेख ढूंढ रहे है? कमेंट करें

,बत्तख का चारा
1 बत्तख का चूजा कहां मिलेगा
2 बत्तख का मूल्य
3 बत्तख पालन से कमाई
4 बतख पालन झारखण्ड
5 बतख के अंडे का बाजार
6 बतख के बारे में जानकारी हिंदी में
7 इंडियन रनर डक किसके लिए अच्छे होते हैं?
8 इंडियन रनर डक कितने समय तक जीवित रहते हैं?
9 क्या आप रनर डक्स खा सकते हैं?
10 Indian Runner ducks for sale near me
11 Blue Indian Runner ducks for sale

Leave a Comment